PROLOGUE CHAPTER -5
अपने आराध्य का स्मरण करते हुए आज इस पांचवे अध्याय को आरंभ करते हुए यह प्राथना करते है की हमारे इस वृतांत को पढ़ने वाले सभी पाठकों को मेरे जैसा ही आनंद बोध हो। पिछले वृतांत में हम मैसूर गए थे और एक पूर्व कर्म प्रायश्चित का हिसाब कैसे मिटा था गुरु देव के आशिर्वाद …