अपने आराध्य का स्मरण करते हुए आज इस पांचवे अध्याय को आरंभ करते हुए यह प्राथना करते है की हमारे इस वृतांत को पढ़ने वाले सभी पाठकों को मेरे जैसा ही आनंद बोध हो।
पिछले वृतांत में हम मैसूर गए थे और एक पूर्व कर्म प्रायश्चित का हिसाब कैसे मिटा था गुरु देव के आशिर्वाद से, ये आप सब ने पढ़ा था पर “मैंने जिया था उन पलों को” l
मैने कई बार अपने पिछले 29 साल की आध्यात्मिक यात्रा में यह पाया है की कर्मों की श्रृंखला और नियति में एक अप्रत्यक्ष संबंध होता है जिसे हम डेस्टिनी (destiny) की संज्ञा देते है और विश्व में पालित हर धर्म की ये अटूट आस्था है कि ये बदला नहीं जा सकता।
पर जैसे जेनेटिक्स ( Genetics) के माध्यम से हम बीज (seeds) के मूल तत्वों को परिवर्तित कर देते है और उसे (Genetically Modified) या आनुवंशिक रूप से संशोधित की संज्ञा देते है उसी प्रकार किसी व्यक्ति के भाग्य में विदित या नियत घटना क्रम को भी बदला जा सकता है।
उपरोक्त सिद्धांत ही मूल है यातमा पद्धति का जिस में जेनेटिक इंजीनियरिंग की तरह फेट इंजीनियरिंग करने की शक्ति है।
अगर आप गौर करे तो हिंदू धर्म में संन्यास की दीक्षा के पहले गुरु पुनः नामकरण करता है |
ऐसा क्यों किया जाता है ?
इसका अर्थ यही है की पुराने नाम (मंत्र) के द्वारा सिद्धस्था या मोक्ष पाना संभव नहीं है इसलिए ऐसा नाम दिया जाता है जो मुक्ति या मोक्ष की ओर ले जाने वाले पथ को चुन कर उस पर अग्रसर हो सके।
नरेंद्र नाथ दत्त और स्वामी विवेकानंद एक ही व्यक्ति थे पर उनके दो अलग मंत्रों ( नाम) की क्या उपलब्धि रही उनके जीवन में यह गौतलब है। जब स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें सन्यास की दीक्षा के समय विवेकानंद (मंत्र) का नामकरण किया तो उनके जीवन की दिशा बदल गई थी |
यह पद्धति शब्द नाड़ी एवं संख्या शास्त्र के अदबुध सामजस्य से भविष्य की घटनाओं को रेखांकित करती है और आगे के भाग्य नियत घटनाक्रम को बदलने की क्षमता रखती है |
मैंने ज्योतिष शास्त्र को भी बहुत गहराई से पढ़ा है और समझा है पर यातामा शास्त्र को बहुत सरल और सटीक पाया हैं ज्योतिष के बनस्पत पर इसके पारंगत या साधक बहुत कम है आज के काल में |
मैंने अपने गुरु महाराज से इस ज्ञान को विस्तृत रूप से जाना था | उन्होंने ये बताया कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति ध्वनि से हुई है और इसी कारण मंत्र ( शब्द नाड़ी ) ही शक्ति को संचालित करता है |
भाग्य बल की तीव्रता या मन्दत उसके मंत्र (नाम) पर निर्भर करती है।
आप कभी कभी अनुभव करेंगे की कोई व्यक्ति मिलने के बाद बड़ा प्रभावित कर जाता है और बड़ा सम्मान उपजता है उसके लिए मन से पर इसका कोई ठोस कारण समझ में नहीं आता है |
कभी कभी एक बड़े ही ऊंचे पद और अत्यंत सफल व्यक्ति से मिलने के बाद भी उस का कोई प्रभाव महसूस नहीं होता आपको।
इसी तथ्य से शुद्ध और अशुद्ध मंत्र या पॉजिटिव या नेगेटिव नाम को आम तौर पर समझा जाता है l
जब किसी के जीवन की फेट इंजीनियरिंग की जाती है तो उसका या तो नाम (मंत्र) परिवर्तित किया जाता है या उसके तंत्र (जन्म तिथि) को एक संख्या से घटाया या बढ़ाया जाता है |
इस बदलाव का भी एक निश्चित समय होता है और ये जीवन के किस किस वर्ष में किया जा सकता है इसको जानने की भी एक विशेष प्रक्रिया है |
यह ( यातामामा शास्त्र) एक गूढ़ विषय है पर फिर किसी वृतांत में सरलता से समझाने का प्रयत्न करूंगा |
जब मैं यातामा शास्त्र के अनुसार दीक्षित हुआ तब उसके छह वर्ष के बाद मेरे चक्र जाग्रत होना शुरू हुए |
उस के बाद चक्र में नित ऊर्जा प्रभावित हुई तो गुरू सानिध्य प्राप्त हुआ |
गुरु आशीर्वाद से साध्वी जी जीवन में आई और मेरा उपचार किया |
और अब गुरु महाराज के मार्ग दर्शन से जीवन यात्रा प्रगति पर है और एक ही लक्ष्य को साधने में प्रयत्नशील हु “मोक्ष”।
अभी तक धीरे धीरे कई पिछले कर्म ऋण चूका चुका हूं और आगे भी कई ऋण चुकाने के लिए कार्यरत हूं |
अब मैं आप को एक साक्षात्कार का अंश बनाता हूं ये आभाष दिलाने के लिए की जब कोई अपने पिछले जन्म के किसी ऐसे किरदार से मिलता हैं जिसे उसने बेइंतहा प्यार किया हो और उस व्यक्ति ने सिर्फ उसका उपयोग कर उसे आत्म हत्या के लिए प्रेरित…… तो क्या महसूस होता है….
इस व्यक्ति और घटना का ताल्लुक मेरे पूर्व जन्म यात्रा के दूसरे सर्ग से है और इसी संसर्ग के बाद मैंने आपके आंतरिक अवसाद से काफी हद तक राहत पाई थी |
मेरा पूर्व जन्म के किरदार का आत्मीय संबंध उस समय के कई संभ्रांत व्यक्तियों से था और और उनमें से कई महिलाएं थी |
मैं एक अत्यंत संवेदनशील व्यक्तित्व का मालिक था | मैंने बहुत संघर्ष कर के बहुत कम उम्र में सफलता और अपने कार्य क्षेत्र में शीर्ष स्थान हासिल किया था।
परंतु जैसा की मैं अपने उस जीवन के शोध से समझ पाया की कुछ तीव्र गति से प्राप्य बड़ी सफलताओं के बाद मैं अतिसय अहंकार से ग्रसित हो गया था |
मैं अपने पिछले जन्म के एक बहुत ही करीबी महिला मित्र से एक शोध छात्र बन के मिलने गया था तो उन्होंने बहुत प्रतीक्षा करा के मुझे समय दिया था |
उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि कोई इस चरित्र पर शोध भी कर सकता है |
हमारे प्रथम साक्षात्कार में एक बार उन से जब कुछ क्षणों के लिए मेरी आँखें मिली थी तो उन्होंने एक बैचैनी सी जाहिर की थी और कहा था ” have we met before” ( क्या हम पहले मिल चुके है )…. “Your eyes seem very familiar”..(आप की आँखें बहुत परीचित सी लग रही है)
आँखें शायद दिल ही नहीं अचेतन मन ( sub conscious mind) तक पहुंचने की एकमात्र सीढ़ी है मुझे उस समय पता चला था |
उनसे करीब आठ बार मिलना हुआ और कई उनके जीवन की उपलब्धियों और घटना के बारे में चर्चा भी हुई पर उनसे बार बार घुमा कर पूछने के बाद भी उन्होंने नही स्वीकार किया की उनके जीवन की सफलता में उस व्यक्ति का बहुत बड़ा योगदान था |
मैंने अपनी अंतिम मुलाकात मैं कई कठिन प्रश्न किए थे उनसे |
मेरा पहला कठिन प्रश्न क्रिया था
“मैडम मैंने सुना है की उन्होंने आपका पहला मकान खरीदने के लिए पूरे पैसे अपने पास से दिए थे जो आपको आगे काम कर के लौटाना था “?
उनका जवाब था “कहां से सुना तुमने” ?
मैने आगे कहा
” मैने ये भी सुना है की आपके उनके साथ संयुक्त नाम से तीन बैंक के लॉकर्स थे” जो उनके परिवारजनों को बिना सूचित किए बंद कर दिए गए थे ?
उनकी भोहें तन गई थी|
उन्होंने लगातार दो ग्लास पानी पीने के बाद मुझ से ऊंची आवाज में पूछा था ” सच सच बताओ किसने बताया है ये सब तुम्हे”
मैने आगे कहां था ” मैडम मुझे ये भी मालूम है की उन्होंने काफी अघोषित संपत्ति आप के पास रक्खी थी ये बोल कर कि अगर किसी दिन मेरी वित्तीय हालत खराब हो जाए तो मुझे इन सब को बेच कर उभार लेना “
उनके हाथ कांपने लगे थे।
उन्होंने ड्राइंग रूम का दरवाजा दौड़ के बंद किया था और मेरे एक दम बगल में बैठ कर पूछा था ” तुम कौन हों और किसने भेजा है तुम्हें ?
मैने आगे बोला था ” मैडम मैं बहुत कुछ और जनता हूं जो और कोई नही जानता”।
“अगर इज़ाजत दें तो कहूं”?
मैने अपने भाववेश में आगे कहा था…..
“उन्होंने आप के उस प्रस्ताव को भी मान लिया था जिसमें अपनी पत्नी से संबंध विच्छेद कर आप से विवाह करना था “।
मैडम का चेहरा एक दम उतर गया था।
मैने आगे कहा था “उन्होंने अपनी इज्जत बचाने के लिए आप की बात पर अपनी पत्नी को तलाक देने की बात भी कर ली थी और अपने बच्चों से भी अलग होने के लिए भी तैयार हो गए थे”.
….. पर……
उस के बाद आपने नकार दिया था विवाह करना…...
“वो न घर के रहे थे न आप के”
“जब वो भयंकर बीमारी में भी आप से मिलने आए थे तो आप ने उनसे मिलने से मना कर दिया था “
उनकी गाड़ी को अपने बंगले में घुसने से मना कर दिया था…
“उनके अत्याधिक शराब सेवन के कारण हुई पैंक्रेटाइटिस के इलाज के लिए मांगे हुए पैसे भी नहीं दिए थे “
“और तो और आप के कहने पर वो धर्म परिवर्तन करने को भी तैयार हो गए थे”
“माना वो आप से बेइंतहा प्यार करते थे और आप उनसे सिर्फ प्यार का स्वांग”….
आप ने उस व्यक्ति का हर तरह से उपयोग किया…..
“आप ने एक इतने सफल व्यक्ति को धोखा दे कर तड़प तड़प कर आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया था”
“और तो और आप उनकी अंत्येष्टि पर भी नही गई थी”
वो प्रायः ज़मीन पर बैठ चुकी थी और दोनों हाथों से मुंह को छिपा कर सब सुन रहीं थी और शायद उनके शरीर में कप कपि छूट रही थी।
उस के आगे भी मैने उनके सामने कुछ अत्यंत गुप्त और अंतरंग बाते और प्रसंग रख कर उन्हे और व्यथित कर दिया था और आखिरकार उन्हें मुझे अपने घर के सेवकों और सुरक्षा कर्मियों द्वारा धक्के दे कर निकाला गया पर ……
“उस दिन उस बी जे रोड बांद्रा पर स्थित उस बंगले से अपमानित हो कर निकलते हुए एक अजीब सी घुटन से जैसे मुक्त हो गया था”
उस दिन मैंने उस व्यक्ति को जी भर के सुनाया जिसके कारण मैने अपना अमूल्य जीवन खोया था और इस जीवन में भी एक भयंकर अवसाद से ग्रसित रहा था।
आप सब सच मानिए यहां ऊपर मैने किसी चलचित्र या फिल्म का दृश्य बयां नहीं किया है बल्कि बिलकुल सच्चा वाक्य जीवंत किया है जिसके कुछ संवाद मैं लिख नही सकता था क्योंकि वो एक अंतरंग संबंध को बयान करने की मर्यादा का अल्लंघन होता…..
मैने कुछ जीवन के मूल्य बहुत बार और बहुत कुछ खो कर सीखे है उनमें से एक है ……..
(1).सच्चा प्यार दो तरफा होता हैं और उसका जुड़ाओ आत्मा से होता है जो गहराई से महसूस किया जा सकता है |
(2 ).सच्ची मोहब्बत एक या दो बार हो सकती है पर उससे ज्यादा नही…
(3). सच्चा प्यार अगर छूट भी जाए तो एकांत में और भावुक पलों में याद जरूर आता है……
(4). और सबसे अजीब बात ये उम्र, जात पात या धर्म नही देख कर नही होता……
पर अगर आपको जीवन में एक बार सच्ची मोहब्बत हो गई तो आपने कुछ हद तक अहसास कर लिया की ईश्वरीय आनंद क्या है।
मैंने आरंभ में फेट इंजीनियरिंग ( fate engineering) के बारे में बताया था जेनेटिक इंजीनियरिंग ( genetic engineering) के तर्ज पर |
आइए उस पर चर्चा करते है……
भाग्य नियत है पर सिद्ध योगी, ऋषि मुनि अपनी सिद्धियों से इसे परिवर्तित करने या पूर्ण रूप से बदलने की क्षमता रखते है…
ये मैने साक्षात देखा और महसूस किया है…….
प्रायः पूर्व कर्मों के आधार पर अगले जन्म में नामकरण होता है और जन्म तारीख तय होती है।
इस जन्म तारीख और नाम के समजश्य से भाग्य का घटना क्रम चलता है।
अगर नाम और जन्म तिथि दोनो अशुद्ध होंगे तो जीवन घोर कष्टकर होगा।
अगर सम होंगे तो साधारण स्तर होगा।
अगर दोनो शुद्ध होंगे तो उच्चतम स्तर का होगा।
इस में एक शुद्ध और एक अशुद्ध अगर हो तो जीवन मानसिक रूप से बड़ा कष्टकर हो जाता है और व्यक्ति क्षमता रहते हुए भी जीवन में कुछ हासिल नही कर पाता।
मंत्र बदल सकने की क्षमता सिर्फ गुरु आशीर्वाद से प्राप्त होती है।
मुझे एक बार गुरु महाराज ने संख्या शास्त्र की चर्चा के दौरान 369 संख्या की महात्व्यता से अवगत कराया था |
बाद में अपनी शोध यात्रा में इसका एक पूरा शोध ग्रंथ का उल्लेख मिला महान वैज्ञानिक निकोलस टेस्ला द्वारा रचित |
उसका सार था की 369 सकारात्मक संख्या है ( positive numbers) है।
( जाप संख्या प्रायः108 ही होती है )
258 सम संख्या है ( neutral numbers)
और 147 नकारात्मक संख्या है ( negative numbers) हैं।
आप गौर करे की वर्तमान की एक बहुत बड़ी कंपनी
” टेसला ” जिसके मालिक एलोन मश्क है। उसने काम समय भी बहुत ज्यादा उन्नति की है ?
कुछ छिपे हुए कारण है क्या ???
क्या इस कंपनी का कोई संबंध निकोलस टेस्ला से है ?…
निकोलस टेस्ला ने अपने लेखों में बहुत बार सुपर माइंड और सुप्रा माइंड को संबोधित किया है l
उसी समय काल में भारत वर्ष में ऋषि अरोबिंदो हुए जिन्होंने इन दोनों की उपस्थिति को ही मानव सत्ता और देव सत्ता के रूप में प्रतिपादित किया।
कहते है श्री मां ( मीरा अलफासा ) जो एक फ्रांसीसी नागरिक थी खोजते खोजते पांडिचेरी पहुंच गई थी और ये कहां था की ऋषि अरविंद उनकी आध्यात्मिक यात्रा का संचालन सूक्ष्म रूप से और अदृश्य भाव से बहुत पहले से कर रहे थे |
महर्षि अरविंद की जो फिलासफी है वो बहुत ही उच्च स्तर की है और मनुष्य जीवन को सफल बनाने के गहन सूत्रों से भी परिचय कराती है |
मैने कई साल पहले जब ऋषि अरविंद साहित्य और चिंतन के मूल तत्व को बदलने की कुचेष्टा उनके अमरीकी मठाधीश द्वारा हो रहीं थी तो मैंने खुद उच्च और फिर उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खट खटाया था और इसे रोका था |
आप सभी सोच रहें होंगे की में अपने वृतांत में कितने भिन्न भिन्न उल्लेख करता रहता हु जिसका आपस में कोई जुड़ाव नही होता।
मैं एक प्रयत्न कर रहा हु अपने मस्तिष्क में समाहित विचारों और तथ्यों को एक कथानक का रूप देने का प्रयत्न है |
अभी कुछ दिन और लगेंगे इसे व्यवस्थित करने में, तब तक मेरे साथ बने रहिए….
अगर पाठक गण चाहेंगे तो लिखता रहूंगा और नही तो ….?
आज बस इतना ही आगे भक्ति जागेगी तो और भी निखरेगा मेरा जीवन और लेखनी ऐसी आशा है……….