अपने सभी पाठकगणों को नमस्कार |
आज मैं आप सभी को पूर्व जन्म की यात्रा के द्वितीय सत्र में ले चलता हूं |
आप सभी शायद मेरे पिछले अध्याय में उल्लेखित भोपाल प्रसंग के बारे में पढ़ने के बाद सोच रहे होंगे कि मैने इस ब्यौरे को प्राथमिकता क्यों दी ?
और मुख्य धारा के तारतम्य को क्यों बाधित किया ?
तो चलिए जरा सा इस अप्रासंगिक सी दिखने वाली घटना पर प्रकाश डाला जाए |
एक मेरे बड़े अंतरंग मित्र है जो मेरे अंदर के कहानीकार से परिचित हैं |
वो बहुत दिनो से कह रहे थे ” गुरु अपने अंदर के साहित्यकार को कब प्रगट करोगे ” ?
उन्होंने मेरे द्वितीय अध्याय में एक जगह उल्लेखित एक वाक्य को इंगित करते हुए कहां ” क्या भयंकर गलती हुई है तुमसे से ” ?
” कोनो ऐसा वैसा काम तो नही न कर दिए हो की खुजाई चालू है ” ?
आगे बोले ” क्या बंधु तुम्हारी यात्रा अपूर्ण रहेगी ” ?
” कुछ बताओ ना अभी क्या चल रहा है जीवन में “
” तुम्हारे पहले और दूसरे अध्याय में तो बहुत से मोड़, गालियां और छोटे छोटे नुक्कड़ का चक्कर लगवा दिए और अपने आप को सिद्ध पुरुष बना दिए “
“अभी क्या चल रहा है ” ?
” क्या गलती किए हो भोपाल में ” ?
“सुन लो बंधु पहले उस्के बारे में बताना फिर 1964 में ले जाना”…….
बस उनको और शायद उनकी जैसे कुशाग्र मानसिकता वाले पाठकों की जिज्ञासा को शांत करने के लिए तीसरे अध्याय को भोपाल यात्रा को समर्पित कर दिया l
वैसे सच तो ये है की अभी तक की सारी उपलब्धियां बेकार है अगर मेरी भोपाल की गलती को प्रभु क्षमा नहीं करेंगे और आगे क रास्त नही दिखायेंगे …
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तो चलिए
हम फिर ऋषिकेश के उस छोटे से निर्जन स्थान में स्थित घर के अंदर चलते है जहां साध्वी जी के सानिध्व में मेरी पूर्व जन्म की यात्रा का पहला सत्र पूरा हुआ है |
हल्की हल्की चैतन्यता आने पर मुझे आभाष हुआ की मेरी नाभि के पास का स्थान जरा ज्यादा गर्म था और इस कारण एक भींगा हुआ तौलिया उस पर रक्खा हुआ था…..
शायद थोड़ा सा रक्त भी आया था मेरी दोनो नासिका से |
जब हल्की सी आँखें खुली तो जैसे शरीर का तापमान बढ़ा हुआ महसूस हुआ और एक कंपन सा था शरीर में…..
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इस के बाद साध्वी जी ने मुझसे कहा की उठ कर बैठो….
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उन्होंने मुझे कहां .. कुछ याद कर पाए कहां पहुंच गए थे ?
मेरी आंखें भर आई और गला रूद्ध हो गया ……
मैने उत्तर दिया…. ” बस इतना याद है की अपने घर गया था“
साध्वी जी ने फिर इशारा करते हुए अपने सचिव से कहा …. ” इन्हे अगर अपने अनुभव लिख कर रखने की इच्छा हो तो तुम मदद कर दो “
उसके बाद एक एक कर के पूरा घटना क्रम याद किया और साध्वी जी ने उसका विश्लेषण किया ….. और सब कुछ नोट होता चला गया……
मैने अपने पिछले जीवन के अंतिम क्षणों को जिया और मुक्त हो गया अपने इस जीवन में बढ़ते हुए असाध्य मानसिक अवसाद से…..
इन पूरे तीनों दिनों में मुझे कई छोटे छोटे क्षण मिले पुनः जीने के लिए पर उसके उपरांत शुरू हुई ….
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मेरी गहन खोज…. खोज…… और खोज…….
और विश्वास कीजिए कई शहरों में सूक्ष्म छान बीन करने के बाद….. हर उस सम्मोहित निद्रा यात्रा में मेह्सूस किया हुआ तथ्य सही पाया……..
मैने प्रायःदो वर्ष तक निरंतर अनगिनत यात्राएं की और अनगिनत व्यक्तियों से मिला उस अतीत के किरदार को और गहराई से जानने के लिए……..
एक छोटा सा संक्षिप्त विवरण आगे प्रस्तुत कर रहा हु पर आगे के वृतांत में कुछ विशेष चरित्रों को एक एक कर के आप से परिचित कराऊंगा…….
खास कर उनसे जिनसे मुझे कर्म ऋण चुकाना था या क्षमा याचना करनी थी….. या किसी भी अवस्था में उनके जीवन में कुछ बदलाव लाना था……
मैं पूर्व जन्म में दक्षिण भारत के एक प्रांत से संबद्ध एक साधारण परिवार में पैदा हुआ था पर युवा जीवन का कुछ भाग कर्नाटक और फिर कलकत्ते में बीता…… और फिर मुंबई में चरम सफलता हासिल की….!
पहला व्यक्तित्व जिस का आभास पुर्व जन्म यात्रा में मिला था …. वो एक युवती थी…..
कर्नाटक राज्य के एक छोटे से शहर में मेरे इस किरदार को पहला प्यार हुआ था एक अत्यंत सरल स्वभाव की साधारण नाक नक्श की युवती से…..
अत्यंत साधारण परिवार से थी वो…. उसके साथ हृदय का रिश्ता नही था पर भावनात्मक जुड़ाव था शायद.
अपने एक दम शुरुआत के संघर्ष के दिनों के उसका साथ बनाए रक्खा और बीच में गंधर्व विवाह भी कर लिया था उससे….
अंतरंगता भी बहुत गहरी हुई थी परंतु मेरा लक्ष्य कुछ और था इस कारण उसे सामाजिक रूप से अपनाने का आश्वासन देते हुए और उसका सारा संचित धन उधार मांग के में निकल गया अपने संघर्ष पथ पर……. और फिर नही मिल पाया उस से जीवन भर…..
अपनी ख़ोज मैं मैने पाया कि वो मेरे जाने के बाद मेरे इंतजार में कुंठाग्रस्त जीवन जीती रही एक टेलीफोन ऑपरेटर के रूप में …..
चूंकि उसने अपना सारा धन मुझे सौप दिया था इस कारण बहुत मुफलसी में जीवन व्यतीत हुआ…..
उसको पुरुष लोलुपता का शिकार भी होना पड़ा शायद कई बार…पर सब झेल गई….
वो मेरी ख्याति के चरम पर मेरे बारे में छपे हर समाचार को पढ़ती…. अपने संभ्रांत पड़ोसियों के घर विनती कर रेडियो पर मेरे बारे में समाचार सुनती और उन समाचार पत्रों को खरीद कर संजो कर रखती….
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पर उसके एक अत्यंत करीबी मित्र के अनुसार वो हमेशा कहती थी की वो एक दिन मिलने आएगा मेरे पास…..
वो अपने अंतरंग सखियों से चर्चा में मुझे ” प्रीति पतरारु” कह कर संबोधित करती थी…….
उसने जीवन में किसी से विवाह नहीं किया और शायद किसी पेट की बीमारी से ग्रसित हो कर 35 वे वर्ष के आस पास चिकित्सा के अभाव में उसकी जीवन लीला समाप्त हो गई…….
अब आप सब सोचेंगे कि मुझे इस चरित्र का पता कैसे चला ? ..
ऐसा था की जब मुझे अपने मुख्य चरित्र का पता चल गया था तो मैंने पहले एक बहुत ही वृहद खोज की उस जीवन के शुरू से लेकर आखरी समय तक की…..
उस पात्र के जीवन से जुड़ी हर खबर और लिखित उल्लेखों को खोजा…..पढ़ा…. और समझा……
उस व्यक्तित्व पर शोध ( रिसर्च) विद्यार्थी बन कर उनके करीबी मित्रों और परिवार गण से मिला और धीरे धीरे काफी तथ्य इकट्ठा कर लिया अपने पास……..
उस किरदार की जीवन यात्रा के प्रायः सभी संवेदनशील घटना या पहलुओ का एक अंदाजा हो गया था मुझे…
फिर समझ पाया किस किरदार को अभी जानना है ?…..और कितनो का साथ इस जीवन में फिर एक बार मिला है ?.. और कितनो की खोज जारी रखना है ? ….. |
और गुरु आशिर्वाद से उसे कैसे पहचानना है और कैसे कर्म ऋण से मुक्त होना है. ?…
” आप को अपनी मोक्ष की यात्रा में बढ़ते हुए सारे लेन देन बराबर करने होंगे और नियति ऐसी व्यवस्था करेगी की आप वो हिसाब कर सको .”……( अगर चाहो तो )
ये एक अत्यंत महत्वपूर्ण सूत्र है और आगे याद रखने योग्य है…...
मैने जब इस युवती के बारे में महसूस किया था अपनी सम्मोहित निद्रा में तो अपने आप के लिए एक घृणा जैसा भाव आया था मन में….
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बाद में अपनी खोज में पाया कि वाकई मेरे कृत्य भर्त्सना योग्य थे……
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उस युवती का इस जीवन में प्रगट होना एक संयोग था…
इस घटना के पहले गुरु जी ने बातों बातों में सतर्क किया था की कोई पास्ट लाइफ एनकाउंटर ( past life encounter) हो सकता है आने वाले दिनों में…..
अगर ऐसा हो तो क्षमा याचना कर के मुक्त हो जाना….
आगे पूछने पर उन्होंने कहां था कि उसकी उपस्थिति का तुम्हे आभास हो जायेगा……
मौका हाथ से निकलने मत देना…..
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वो
एक कैथोलिक नन के रूप में मिली मुझे कर्नाटक के एक छोटे से शहर ” मैसूर ” में……
मैं अपने एक ऑफिस के सहपाठी के विवाह में सम्मालित होने वहां गया था….
बारातियों की ठहरने की व्यवस्था जहां की गई थी उस से सट के एक मिशनरी स्कूल था लड़कियों का…..
वहां बच्चियों का एक संगीत कार्यक्रम चल रहा था और मैं उत्सुकतावश वहां चला गया था…..
मुझे संगीत से जरा ज्यादा लगाव है…..
जब मैं संगीत स्थल में दाखिल हो रहा था तो मुझे किसी ने रोका था……
वो एक नन महिला थी…….
तीखे नाक नक्श पर मुख पर शांति का भाव….
बड़ी बड़ी आंखें…..
उसके पहले शब्द थे ” आप यहां नही आ सकते “
मुझे उसे देखते ही जैसे झटका सा लगा….
एक अनभुज इशारा मिला सब कोंसीयश माइंड ( sub conscious mind) से की इस व्यक्ती से कोई संबंध है पहले का….
इतना जाना पहचाना है इस का व्यक्तिव ? यह कैसे ?
मैने बातें बनाते हुए ये हवाला दिया की मैं कलकत्ते से एक विवाह में सम्मालित होने आया हूं और आप के इन बच्चियों को एक बार गाते देखना चाहता हूं…….
विश्वास कीजिए उसे कोई भी आभास नहीं था पूर्व जन्म का पर मुझे पहले वार्तालाप में उसने ये कहां था ” आप का चेहरा और बाते बड़ी जानी पहचानी सी लगती हैं “
” क्या हम पहले मिल चुके है कहीं ? “…
मैं ने जाना जीवन में पहली बार की ” कभी कभी सच बोलना भी झूठ होता है और कभी कभी झूठ बोलना भी सच होता है”
मैं तीन दिन रहा मैसूर में और तीनों दिन एक बार उस मिशनरी स्कूल में गया जहां वो एक सीनियर नन टीचर के रूप में कार्यरत थी……
उस से “कन्फेशन” के बहाने से अपने कर्म और कृत्य बयान किया वहां के चर्च के कन्फेशन बॉक्स में बैठ कर…
…
वहां के मुख्य पादरी भी साथ बैठे थे जब मैं बयां कर रहा था उन घटनाओं को उन दोनों के समक्ष ….
तब…..
न जाने क्यों उस की आंखों से अश्रु टपक रहे थे और कई बार उसने उठ कर जाने की चेष्टा भी की थी अपने रुदन को छिपाने हेतु …..
पर मैंने कहां ” आप एक महिला है और जिस युवती के साथ मैने ऐसा बर्ताव किया था वो अब दुनिया में नहीं है इस लिए आप आज उसकी जगह यहां बैठ कर मेरी क्षमा याचना सुनिए “
मैं बार बार दोहरा रहा था की “आप अगर मुझे माफ कर देंगी तो मैं समझूंगा उसने मुझे क्षमा कर दिया “……
तीसरे दिन वो आना नहीं चाहती थी ” मेरे कन्फेशन ” में….
पर मैंने मुख्य पादरी से बहुत आग्रह किया तो उनके निर्देश पर आखिर आ गई……
मोटे मोटे आंसू झड़े थे उसकी बड़ी बड़ी आंखों से जब उसने ये शब्द कहे थे…..
“ हैं यीशु इन्हे माफ कर देना “
उस विवाह के प्रायः हर उत्सव से मैं नदारद रहा ये बहाना बना कर की मेरे कोई परिचित मिल गए है यहां इस कारण वहां समय देना पड़ गया…..
पर उस कानफेस्सन सत्र के बाद पहली बार महसूस किया था की कोई बोझा जैसे दिल से उतर गया हो……
कई दिनों तक उसका चेहरा आंखों के सामने घूमता रहा…..
पर आखिर धूमिल होती गई उसकी याद….
मैंने गुरु महाराज से जब पूछा था की क्या इस जीवन में अब संपर्क बनाये रखना है तो उन्होंने कहां था…..
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” ये संयोग सिर्फ क्षमा याचना और क्षमा दान के लिए बना था”
“इस संबंध का बने रहना या लुप्त हो जाना प्रभु इच्छा पर निर्भर करता है “
पर मैंने अभी कुछ दिनों पहले तक उसकी जानकारी बनाए रखी थी…..
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वो असम में एक बड़ी मिशनरी संस्था की मुख्य कार्यवाहक के रूप में कार्यरत थी…..
पहली बार इस घटना के बाद ये आभाष हुआ था की प्रेम जन्म जन्मांतर तक वैसा ही बना रहता है और…….
” प्रेम कभी कम नहीं होता अगर सच्चा हो “…..
जब भी मैं एक गजल सुनता हूं तो उसकी याद आती है
फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा ना था
सैंकड़ों तूफ़ान लफ़्ज़ों में दबे थे ज़ेर-ए-लब
एक पत्थर था ख़मोशी का कि जो हटता न था
याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी ‘अदीम’
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था
मस्लहत ने अजनबी हम को बनाया था ‘अदीम’
वर्ना कब इक दूसरे को हम ने पहचाना न था …..
बस आज विराम लेता हु अगले अध्याय में फिर साथ चलेंगे…
( आप में से कोई अगर अपनी कोई टिप्पणी भेजना चाहे तो मुझे खुशी होगी पढ़ कर )
Great connectivity and the ease of writing. You dealt with subject effortlessly and with great emotions captured. Some details gave goosebumps