प्रस्तावना अध्याय – 2

पिछले वृतांत की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज वही से शुरू करते हैं जहां पिछला विराम लिया था |

रिग्रेशन यानी पिछले समय की यात्रा और प्रोग्रेसन का तात्पर्य भविष्य की घटनाओं का पूर्वानुमान, यही मैं समझ पाया उन तीन दिनों के कार्यक्रम से गुजर के |

तीसरे दिन की क्रिया के बाद मानसिक अवसाद कम होता प्रतीत हुआ और शारीरिक उर्जा में बहुत बढ़ोतरी प्रतीत हुई |

ऐसा लगा जैसे कितने दिनों की यात्रा और कितने आत्मीय लोगों से मिल के लौटा हूं | गला जैसे हर क्षण रुंधा प्रतीत हो रहा था और आँखें नम | पर मन में से डर जैसे कम हो गया था |

कैसे क्रिया प्रारंभ हुई ये मुझे अच्छे से याद है और क्यों न हों उस क्षण कितना भय व्याप्त था मन में |

मेरे माथे पर जब साध्वी जी ने पहले बार अपना हाथ फेरा था तो जैसे कोई उर्जा निकल के समा गई थी पूरे शरीर में | उन्होंने अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से मेरे भोहों के बीच दबाव डाला था और मुझे सम्मोहित कर निद्रा अवस्था में ले गई थी |

उनकी भरी हुई आवाज में मंत्रोचारण सुनाई दे रह था फिर लगा किसी अंधकार भरे कुएं में गिरते जा रहे है और अचानक जैसे किसी परिचित स्थान पर पहुंच गए हैं|

उन्होंने मुझे इस यात्रा के लिए तैयार करते हुए कहा था मेरी आवाज तुम्हे हर क्षण सुनाई देती रहेगी और उसके द्वारा दिए गए सभी निर्देशों का पालन करना |

मेरा पहला पड़ाव था शायद एक बड़ा सा फ्लैट और उसके बड़े बड़े कमरे और मैं उसके ड्राइंग रूम में पहुंच गया था | सब कुछ धुंधला धुंधला सा था पर जगह जैसे बहुत जानी पहचानी से लग रही थी |

अलमारीयां, सोफे, दीवार पर टंगी तस्वीरें सब कुछ जैसे चिर परचित |

अचानक साध्वी जी पूछती है कौन हो तुम ?

कहां आए हो ?

बहुत पीड़ा का अनुभव हुआ था याद करने में |

सामने दीवार पर एक बड़ी से फोटो लगी है मेरी |

पर नाम क्या है मेरा ?

वो दीवार पर लगा बड़ा सा शीशा, वो कांच के ग्लासों से भरी अलमारी और जगह जगह रखे हुए कई ऐशट्रे – सब कुछ याद आ गया |

कौन हू मैं ? कहां आ गया हू ? ये मेरा कौन सा घर है ? मेरा परिचय क्या है ? कौन सा साल है ??

साध्वी जी अपनी वाणी के माध्यम से एक एक कर के सारे उत्तर खोज देती है मेरे लिए |

साल 1964….

तारीख 10 अक्टूबर……

जगह पेडर रोड……

नाम ….. (बताना अनुचित होगा) |

शारीरिक कष्ट बहुत ज्यादा खास कर पेट में |

भयंकर मानसिक त्रासदी से गुजरते हुए जीवन यापन |

हर सुख होते हुए हर सुख का अभाव…….

मानसिक रूप से कई महिलाओं से अंतरंग जुड़ाओ और किसी एक से अनबन और विरह को बर्दाश्त न कर सकने के कारण अत्यधिक मदिरा सेवन |

हर क्षण उसको याद करना…..

अचानक दर्द होता है पेट में…..

हाथों से पेट दबा कर सामने दरवाज़े की ओर भागता हू……

सामने मेरा सयन कक्ष है और पूरा कमरा धक धक महक रहा है सिगरेट की गंध से …….

बिस्तर के कोने पर पड़ी एक बोतल खोल के ढेर सारी गोलियां मुंह में डाल लेता हूं…….

शायद शराब जो ग्लास में एक स्टूल पर रखी थी उसी से सब गोलियों को गटकने की कोशिश करता हूं……..

धीरे धीरे जैसे चैतन्यता लुप्त हो रही है……

आंखों के सामने अंधकार छा रहा है……

चिल्लाना चाहता हु पर शक्ति जैसे चूक रही है ……

तभी जैसे साध्वी जी कहती हैं आओ मेरा हाथ पकड़ो और मैं तभी जोर जोर से रोने लगता हू और फिर सब कुछ जैसे लुप्त हो जाता है सूक्ष्म चक्षु के सामने से |

इस प्रकरण में कई किरदारों का परिचय जाना और ये भी जाना की किस किस का कर्म ऋण चुकाना है, किस किस से क्षमा याचना करनी है, किस की जीवन यात्रा का मार्ग बदलवाना है और किस को हर अपमान के बाद मना लेना है क्यों की अगर वो मुझे क्षमा नहीं करेगें तो निर्वाण या मोक्ष पाना असंभव है |

ये अनुभव स्वप्न जैसा ही था पर यू प्रतीत हुआ जैसे मैंने अपनी आंशिक चेतना के साथ यह यात्रा की और एक निरंतर हो रही पीड़ा से मुक्ति पाई |

अगर समझा जाए तो वो मेरे पूर्व जन्म के शायद अंतिम क्षण थे और अंतिम क्षणों की दर्दनाक पीड़ा सूक्ष्म अंतर्मन में जैसे समाहित हो गई थी और शायद इस जन्म में भी वो अब मानसिक अवसाद के रूप में प्रगट हो रही थी |

मुझे सन 2000 में जिस बीमारी से गुजारना पड़ा उसका कोई कारण डॉक्टर भी पता नही लगा सके पर शायद पिछले जन्म में नशे की अतिशियोक्ति इस जन्म में बीमारी बन के सामने आई |

यह एक दृश्य था पर ऐसे कई दृश्य मैंने फिर से जिए उस यात्रा के दौरान |

इस पूरे घटनाक्रम से मैने ये समझा कि मेरे अचेतन मन में पीड़ा ऐसे समाहित हो गई थी और उसके बीज इस जीवन में फिर से अंकुरित हो रहे थे एक निरंतर अवसाद के रूप में |

बाद की जीवन यात्रा में कई ऐसे घटनाक्रम हुए जिससे मोक्ष के पथ के अवरोध को हटाने में सक्षम रहा | ताइपे (Taipei), सेंट लुईस (St Louis), कोलंबो (Colombo), अर्न्हेम (Arnhem), मुंबई, बैंगलोर, लुधियाना और सबसे महत्वपूर्ण भोपाल इन सारे शहरों से जुड़ी रोचक घटनाएं है मेरे पूर्व जन्म की यात्रा से जो आगे शब्द बद्ध करूंगा  |

मैं गुरु कृपा से समय समय पर उचित मार्गदर्शन प्राप्त कर अपने पिछले सभी पूर्व कर्मों का ऋण उतरता चला गया पर एक जगह आ कर मैने भयंकर गलती कर दी |

चुकी अभी बहुत लंबा वृतांत बाकी है भोपाल पहुंचने तक इसलिए अभी वापस पहली यात्रा और पहला पड़ाव पर ही चर्चा करते है |

यहां एक उल्लेख एक चर्चित पुस्तक जो एक अमेरिकन मानसिक चिकित्सक डॉ ब्रायन वेस ने लिखी है ” सेम सोल मैनी बॉडीज ” ( Same Soul Many Bodies). Past life regression को इस पुस्तक ने बुद्धि जीवियो में भली भाती प्रतिपादित किया |

वैसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ये आज भी आलोचना के घेरे में है और कहां जा रहा है की इसका कोई वैज्ञानिक आधार नही है पर ब्रह्मांड की संरचना और संचालन के बारे में हमारे वैज्ञानिक भी क्या जानते है ?

कभी मौका मिले तो पढ़िएगा |

महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने भी ये कहा था की ब्रह्मांड के संचालन की समझ ही धर्म का मूल होना चाहिए |

उनके समकालीन वैज्ञानिक निकोलस टेस्ला भी हुए और उनकी कई खोजें आज भी अनजानी सी है आम दुनिया के लिए | उनकी खोज और विशिष्ट संख्या 369 पर भी कुछ लिखने का साहस करूंगा | उन्होंने कहां था हमारे कई जन्मों की यात्रा का सम ही हमें मोक्ष (salvation) प्राप्त करवाता हैं |

अपनी पूर्व जन्म की यात्रा में धीरे धीरे कई पात्रों से मिला और फिर बाद में उनके बारे में खुद जाकर भी कई तथ्यों का अध्यन किया तो पाया वाकई में अधिकांश सब सच था | ये सत्यता उस हद तक प्रमाणित हो पाई जहां तक उसे बयान करने वाले जीवित थे |

मैने कई बार गुरु आदेश पर किसी पूर्व जन्म के अपने परिचित से संपर्क साधने की चेष्टा की है तो ये पाया है कि ज्यादातर वो इसे समझ ही नही सका या यूं कहिए की उसके अंदर वो आध्यात्मिक गहराई ही नही थी की समझ सके की मैं क्या कह रहा हु |

पर उसने इतना जरूर स्वीकार किया है की मैं उसे बिलकुल अलग सा लगा और ये भी लगा कि वो मुझे शायद पहले से जानता है |

कुछ जो आज भी संपर्क में है मुझे आत्म सखा होने की उपाधि दे चुके है | मैं उनसे कहता हु तुम मुझ से संपर्क तोड़ सकते हो पर भूल नहीं सकते – “ये पिछले जन्म का साथ है”

“इस यात्रा में मेरे साथ चलिएगा क्यों की आप सब की सहायता से भक्ति भाव को समझना है “

अभी विराम लेते है……..

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